Wednesday, October 31, 2012

वक्त की रोशनाई में रोमांस का चेहरा

गीताश्री
आज भी अधेड़ इश्क(वक्त) जब अंगड़ाई लेता है तो वक्त की हांफती जुबान से एक ही गाना फूटता है—अये मेरी जोहरा जबीं..तुझे मालूम नहीं, तू अभी तक है हंसी.. सफेद शिफौन की साड़ी में लिपटी नायिका (चांदनी) जब अपनी इश्क का इजहार करने एल्प्स की चोटी पर लहराती है तो रोमांस की झीनी चादर सी हवाओं में तन जाती है.. जब कोई कम चुलबुली लड़की अधेड़ पुरुष के प्रेम (लम्हे) में पड़ती है तो जमाने में सनसनी सी फैल जाती है, कथित नैतिकता चिंदियां उड़ने लगती है और उम्मीदें अपनी आंखें संभावनाओं पर जोर से गड़ा देती हैं, एक नाजायज बेटा पहली बार जोर से अपने बाप को नाजायज बाप (त्रिशूल) बोलता है तो सामाजिक रिश्ते के ताने बाने नए सिरे अपनी परिभाषा खोजने लग जाते हैं..यह सबकुछ किसी एक की देन है..जिसका अभी अभी जाना हमें बेहद खल गया। जिंदगी को रुमानी नजरिए से देखने वाले फिल्मकार यश चोपड़ा की मौत किसी सपने की मौत से कम नहीं है। फिल्म इंडस्ट्री को दो दो सुपर स्टार, शहंशाह (अमिताभ बच्चन) और बादशाह (शाहरुख खान) देने वाले यश चोपड़ा समाज के यथार्थ और सिनेमा की फंतासी के सबसे बड़े बुनकर थे। अपनी फिल्मों की नायिकाओं के सौंदर्य को उभारने में वह राजकपूर के साथ खड़े दिखाई देते हैं। राजकपूर ने जहां नायिकाओं के मांसल सौंदर्य को परदे पर खूबसूरती से उतारा वहीं यश चोपड़ा देह को आंतरिक सौंदर्य से जोड़ कर देखते हैं। चाहे चांदनी की श्रीदेवी हों या दिल तो पागल है की माधुरी दीक्षित, डर की जूही चावला हो या सिलसिला की रेखा, दाग की शर्मिला टैगोर हों या त्रिशूल की राखी। हिंसा और एक्शन की चाशनी में डूबा साठ और सत्तर का दशक यकायक नौ नौ चुड़ियों वाली नायिकाओं से खनक उठा। परदे से हिंसा गायब होने लगी और रोमांस का दौर लौट आया। इस युगांतकारी परिवर्तन के लिए यश चोपड़ा उस दौर के सबसे साहसी फिल्मकार माने गए। रौमांस की भी एक ब्रांड वैल्यु होती है, ये बात यश ही साबित कर सकते थे। साथ ही आउटडोर लोकेशन किसी फिल्म के लिए खास तत्व हो सकती है या कहें कि उसे रोमांस के उद्दीपक के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है, इसे बताया भी उन्होंने। एक खास तबके में लोकप्रिय करवाचौथ जैसे व्रत को उन्होंने एक ब्रांड वैल्यू दी और आधुनिक औरतें भी इसके पीछे पगला गईं। 80 साल का बूढ़ा बेहद युवा प्रेम के बारे में सोचे, यह हैरानी की बात तो है। अपनी आखिरी फिल्म जब तक है जान के बाद निर्देशन से सन्यास लेते उनका बाय बाय का संदेश जीवन के प्रति विदाई का भाव था, किसी से नहीं सोचा। परदे का इश्क जीवन में उनके नाम से धड़कता रहेगा। बतौर निर्देशक टौप टेन फिल्में 1.वक्त(1965) 2.इत्तेफाक(1969) 3.दाग(1972) 4.दीवार(1975) 5.त्रिशूल(1978) 6.सिलसिला(1981) 7.चांदनी(1989) 8.लम्हे(1991) 9.डर(1993) 10.दिल तो पागल है(1997)

Monday, October 5, 2009

वेदांता की मौत की चिमनी

वेदांता की मौत की चिमनी
छत्तीसगढ़ के बालको में घरों को रौशन करने के लिए बनाई जा रही विशाल चिमनी ने ही सैकड़ों घरों को हमेशा-हमेशा के लिए अंधेरे में डूबा दिया है. इस घटना को दस दिन हो गये हैं लेकिन अब तक 41 मज़दूरों की हत्या की जिम्मेवारी तक तय नहीं हुई है. हालत ये है कि वेदांता की इस चिमनी में कितने मज़दूर काम कर रहे थे, इसका आंकड़ा भी छत्तीसगढ़ सरकार के पास नहीं है.
बालको नगर से आलोक प्रकाश पुतुल की रिपोर्ट
आगे पढ़ें

Monday, October 13, 2008

निरुपमा दत्त मैं बहुत उदास हूँ...




दु:ख लड़ने के लिए 

एक बहुत बड़ा हथियार है 

जो पहले 

पानी की भाषा में 

आदमी की आँखों में आता है 

और फिर 

हाथों की धरोहर बन जाता है 

पानी के पत्थर बनने की प्रक्रिया 

आदमी के इतिहास से पहले का इतिहास है 

किन्तु अब 

यह प्रक्रिया 

आदमी के इतनी आसपास है 

कि दु:खी क्षणों में 

वह 

पानी से एक ऎसा हथियार बना सकता है 

जो दु:खों के मूल स्रोतों को 

एक सीमा तक मिटा सकता है ।

-कुमार विकल