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Friday, October 16, 2015

यात्रा कोलाज - केरल

यात्रा कोलाज - केरल 

आश्चर्य का देवलोक

न जल्दी करो न परेशान हो। क्योंकि आप यहां एक छोटी-सी यात्रा पर हैं। इसीलिए निश्चिंत होकर रुकिए और फूलों की खूशबू का आनंद उठाइए...
                               (वाल्टर हेगन)

अथिरापल्ली झरना 
यही है ईश्वर, यही है ईश्वर...विराट है ईश्वर...और क्या है ईश्वर...यही तो है...विराट...

सामने विराट झरने को देखते हुए अल्का धनपत दोनों बांहे फैलाएं बुदबुदा रही थीं। शोर से भरा हुआ माहौल भी उनकी इस बुदबुदाहट को छिपा नहीं पाया। उनके चेहरे पर पानी की फुहिंयां पड़ रही थीं. वे गीलीं हो कर लगातार भव्यता के बयान में डूबी थीं।
यह नजारा वहां आम है....एक बार जो आता है, वह झरने के बाहुपाश में बंध जाता है। ठीक वैसे ही जैसे हालिया रीलीज फिल्म बाहूबली की भव्यता ने सिनेप्रेमियों को अपने मोहपाश में बांध लिया था। अल्का मारीशस से आईं थी, सेमिनार में भाग लेने। बहुत ही सुंदर द्वीप से आई हुईं विदुषी पर्यटक का चकित होकर इस तरह झरने को ईश्वरी रुप में स्वीकार लेना अनूठा अनुभव था हम सबके लिए।


केरल के त्रिशुर जिले का एक प्रसिद्ध ब्लाक कोंडुगलूर से पचास किलोमीटर दूर स्थित अथिरापल्ली के घने जंगलो में यह विराट झरना कई कारणों से प्रसिद्ध है। याद करिए...गुरु फिल्म में एक गाना---
गीताश्री
गीली चट्टान पर , बारिश में भींगते हुए ऐश्वर्या राय गा रही हैं....बरसो रे मेघा मेघा...बरसो रे..., यहीं है वो जगह जहां हजार मीटर ऊपर से झरना नीचे गिरता है और पत्थरों से टकरा कर पानी चारों तरफ धुंध की तरह छा जाता है। आप झरने के सामने मुंह करके खड़े हो तो पानी की छींटे भिंगो जाएंगे।  
बाहूबली फिल्म की याद तो ताजा होगी सबके जेहन में। बाहूबली इसी झरने की नीचे खड़ा होकर ऊपर की पहाड़ियों पर चढने का स्वप्न देखा करता था और झरने को पार करने के मंसूबे पाला करता था। जिसे एक दिन वह पार कर ही जाता है। इस विराट झरने को को कोई दैवीय शक्ति ही पार कर सकती है। बाहुबली की शूटिंग यही हुई थी।
झरने को पास से महसूसने के लिए, उसे चखने के लिए बहुत उतराई है और फिर उतनी ही चढाई भी है। दूर से भी देख सकते हैं लेकिन झरने के विराट स्वरुप को देखने और महसूस करने के लिए चढाई उतराई का कष्ट झेलना ही पड़ेगा। एक बार झरने का सामना होगा तो दुनिया ओझल हो जाएगी। सारी थकानें छूमंतर। सामने विराट स्वरुप और आप। दो विशिष्टों की मुलाकात और समयहीन होता समय। कभी अपने छोटे और निरीह होने का बोध तो कभी ईश्वरीय छटा देखने का गर्व। दोनों बांहे फैलाएं देर तक झरने को छू कर आती गीली हवा को अपने फेफड़ो में भर ताजादम हो सकते हैं। सारे विषाद धुल जाते हैं। झरने को एक निश्चत दूरी से देखते हैं। पास से देखने के कई खतरे। इतना खींचाव महसूस होता है कि पर्यटक रोक नहीं सकते खुद को। ठीक वैसे ही जैसे हल्के अंधेरे में समदंर खींचता है अपनी ओर।
केरल के पास प्राकृतिक सौंदर्य का अकूत खजाना है। अथिरापल्ली इलाके में ही दो और भव्य झरने हैं। पर्यटको का तांता लगा रहता है। कोंडुगुलूर ज्यादा लोकप्रिय पर्यटन स्थल नहीं है। इसीलिए अथिरापल्ली में स्थानीय पयर्टक ज्यादा दिखाई देते हैं। केरल आने वाले  पर्यटक सबसे ज्यादा दो जगहों पर जाना पसंद करते हैं। केरल का हिल स्टेशन मुन्नार और बैकवाटर के लिए फेसम एलेप्पी और कुमारकोम।  
जबकि केरल के चप्पे चप्पे पर प्राकृतिक सौंदर्य ही नहीं, ऐतिहासिक और पौराणिक खजाना भी भरा पड़ा है। किसी शहर को रेशा रेशा खोलना (एक्सप्लोर) करना हो तो पोपुलर जगहों की नहीं, उसके सुदूर इलाको में जाना चाहिए। जहां जाकर आपके ज्ञान में बढोतरी ही होती है।
भरत मंदिर 
अगर कोंडुगुलर के अंदरुनी इलाके में हम न घूम रहे होते तो कैसे पता चलता कि देश का इकलौता भरत मंदिर यहां है। देश के किसी भाग में राम के भाईयों के मंदिर नहीं मिलेंगे। मगर कोंडुगुलूर के आसपास के इलाको में राम के अलावा सभी भाईयों के मंदिर मिलेंगे जहां उनको देवताओं की तरह पूजा जाता है।  बलुई पत्थरों से बना यह प्राचीनकालीन मंदिर हैं। इनका स्थापत्य ही उसकी प्राचीनता की ओर इंगित करता है। पांच किलोमीटर की दूरी पर भरत, लक्ष्मण और शत्रुध्न के नाम पर मंदिर हैं। ठीक वैसे ही जैसे देश भर में ब्रम्हा का एक ही मंदिर पुष्कर में है।
राम के तीसरे भाई भरत के नाम पर कोडलमनिक्यम मंदिर भी चेरा किंग सतनु रवि वर्मन के शासन काल में 854 ए डी में बना था। कोंडुगुलुर प्रखंड के इरींजालाकुड़ा गांव में स्थित इस मंदिर में भरत की छह फुटा मूर्ति है जिसका चेहरा पूरब की तरफ है।
अंदरुनी हिस्से में न घूमते तो यह भी पता न चलता कि मेथाला गांव में भारत की पहली मस्जिद की स्थापना हुई थी। जहां आज भी नमाज पढी जाती है। इस ऐतिहासिक धरोहर को प्रशासन ने आज तक सहेज संभाल कर रखा है और इसका विस्तार भी किया है। मस्जिद के साथ ही इसका संग्रहालय भी है जिसमें सदियों पुरानी धरोहरें दिखेंगीं। ऐतिहासिक दस्तावेजो के अनुसार इस मस्जिद की स्थापना 629 AD में हुई थी।

प्राचीन काल में भारत और अरब देशों के बीच व्यापारिक संबंध थे। अरब देशों के व्यापारी सुमद्गी रास्तों से भारत आते थे। वे जहां भी जाते, वहां अपने धर्म और संस्कृति को साथ ले कर जाते। बताते हैं कि अरब व्यापारियों का एक दल मालाबार क्षेत्र में आया तो उन्हें अपने धार्मिक स्थल की आवश्यकता महसूस हुई। इसी दौरान इस क्षेत्र के राजा चेरा , जिन्हें हजरत मौहम्मद का समकालीन माना जाता है, वे इनके संपर्क में आएं और इतने प्रभावित हुए कि इस्लाम धर्म कबूल कर लिया। बाद में वे ताजुद्दीन नाम से मशहूर हुए।
राजा ने ही अरब के रहने वाले मलिक-बिन-दीनार को खत लिख कर यहां मस्जिद बनाने का आग्रह किया। 7वीं शताब्दी में अरब से व्यापारियों का एक दल मलिक बिन दीनार और मलिक बिन हबीब के नेतृत्व में केरल आया और इस मस्जिद की स्थापना की। उन्होंने राजा चेरा के नाम पर ही मस्जिद का नाम चेरामन मस्जिद रख दिया। 11वीं शताब्दी में इस मस्जिद का पुनरुद्धार हुआ और उसके बाद कई बार इसका परिसर बढाया गया। सांप्रदायिक सदभाव की प्रतीक मस्जिद आज भी चमकती है। इसके रखरखाव पर खासा जोर रहता है। क्योंकि यह मस्जिद गैर मुस्लिमों के बीच भी श्रद्धा का केंद्र बनी हुई है। हिंदू परिवार के लोग अपने बच्चे का विधारंभ उत्सव इसी मस्जिद में करते हैं।

भरत मंदिर परिसर 
केरल के छोटे छोटे विकसित गांवों में प्रकृति और इतिहास के कितने ही गौरवशाली पन्ने फड़फड़ाते मिलेंगे। कोंडुगुलूर का पचास साल पहले बना एम ई एस अस्माबी कालेज भी उतना ही गौरवशाली है। पूरे दावे के साथ कहा जा सकता है कि दक्षिण भारत में अकेला राज्य है केरल जहां हिंदी के प्रति बैर का भाव नहीं, जहां हिंदी सबको समझ में आती है और थोड़ा बहुत सब बोल लेते हैं। खासकर टूरिज्म से, ड्राइविंग से और रेस्तरां से, अध्यापन से, किसी भी व्यवसाय से जुड़े लोग हिंदी अच्छी बोल लेते हैं। केरल के तन पर जितना पानी है उतना ही पानी केरल के लोगों और उनके मिलनसार स्वभाव में है। नारियल पानी की मिठास उनकी हंसी में मिलेगी और नेह उनके आतिथ्य में। केरल का खानपान भी लजीज है। कई प्रकार के व्यंजन है जिसका स्वाद सिर्फ वहीं जाकर लिया जा सकता है। कहते हैं न कि खाने का मौलिक स्वाद में उस जगह की हवा और पानी का भी योगदान होता है। सुखद ये कि जिस कालेज में हिंदी सेकेंड लैंगेवेज की तरह पढाई जाती है वहां हिंदी में एक अंतराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन आश्वस्तिदायक लगा। विषय भी ऐसा कि एकबारगी आप हैरान हो जाएं... हिंदी साहित्य में सेना-सिविल संबंध। अमेरिका ( देवी नागरानी) मारिशस (अल्का धनपत) के अलावा देशभर से प्रतिभागी, वक्ता यहां जुटे और दो दिन तक हिंदी ही हिंदी छाई रही। चलते समय इसीलिए आयोजन मंडल से जुड़े प्रो. रंजीत माधवन ने कहा—आप लोग चले जाएंगे पर हमलोग कई दिन तक हिंदी में ही हिंदी की बातें करते रहेंगे।
आत्मीयता की ऐसी मिठास देवों की धरती पर ही संभव है।  


गीताश्री @ भरत मंदिर