यात्रा कोलाज - केरल
आश्चर्य का देवलोक
आश्चर्य का देवलोक
“न जल्दी करो
न परेशान हो। क्योंकि आप यहां एक छोटी-सी यात्रा पर हैं। इसीलिए निश्चिंत होकर
रुकिए और फूलों की खूशबू का आनंद उठाइए...”
(वाल्टर हेगन)
अथिरापल्ली झरना |
सामने विराट झरने को देखते हुए अल्का धनपत दोनों बांहे फैलाएं बुदबुदा रही
थीं। शोर से भरा हुआ माहौल भी उनकी इस बुदबुदाहट को छिपा नहीं पाया। उनके चेहरे पर
पानी की फुहिंयां पड़ रही थीं. वे गीलीं हो कर लगातार भव्यता के बयान में डूबी
थीं।
यह नजारा वहां आम है....एक बार जो आता है, वह झरने के बाहुपाश में बंध जाता
है। ठीक वैसे ही जैसे हालिया रीलीज फिल्म “बाहूबली” की भव्यता ने सिनेप्रेमियों को अपने मोहपाश में
बांध लिया था। अल्का मारीशस से आईं थी, सेमिनार में भाग लेने। बहुत ही सुंदर द्वीप
से आई हुईं विदुषी पर्यटक का चकित होकर इस तरह झरने को ईश्वरी रुप में स्वीकार
लेना अनूठा अनुभव था हम सबके लिए।
केरल के त्रिशुर जिले का एक प्रसिद्ध ब्लाक कोंडुगलूर से पचास किलोमीटर दूर
स्थित अथिरापल्ली के घने जंगलो में यह विराट झरना कई कारणों से प्रसिद्ध है। याद
करिए...”गुरु” फिल्म में एक गाना---
गीताश्री |
“बाहूबली” फिल्म की याद तो ताजा होगी
सबके जेहन में। बाहूबली इसी झरने की नीचे खड़ा होकर ऊपर की पहाड़ियों पर चढने का
स्वप्न देखा करता था और झरने को पार करने के मंसूबे पाला करता था। जिसे एक दिन वह
पार कर ही जाता है। इस विराट झरने को को कोई दैवीय शक्ति ही पार कर सकती है। “बाहुबली” की शूटिंग यही हुई थी।
झरने को पास से महसूसने के लिए, उसे चखने के लिए बहुत उतराई है और फिर उतनी ही
चढाई भी है। दूर से भी देख सकते हैं लेकिन झरने के विराट स्वरुप को देखने और महसूस
करने के लिए चढाई उतराई का कष्ट झेलना ही पड़ेगा। एक बार झरने का सामना होगा तो
दुनिया ओझल हो जाएगी। सारी थकानें छूमंतर। सामने विराट स्वरुप और आप। दो विशिष्टों
की मुलाकात और समयहीन होता समय। कभी अपने छोटे और निरीह होने का बोध तो कभी
ईश्वरीय छटा देखने का गर्व। दोनों बांहे फैलाएं देर तक झरने को छू कर आती गीली हवा
को अपने फेफड़ो में भर ताजादम हो सकते हैं। सारे विषाद धुल जाते हैं। झरने को एक
निश्चत दूरी से देखते हैं। पास से देखने के कई खतरे। इतना खींचाव महसूस होता है कि
पर्यटक रोक नहीं सकते खुद को। ठीक वैसे ही जैसे हल्के अंधेरे में समदंर खींचता है
अपनी ओर।
केरल के पास प्राकृतिक सौंदर्य का अकूत खजाना है। अथिरापल्ली इलाके में ही दो
और भव्य झरने हैं। पर्यटको का तांता लगा रहता है। कोंडुगुलूर ज्यादा लोकप्रिय
पर्यटन स्थल नहीं है। इसीलिए अथिरापल्ली में स्थानीय पयर्टक ज्यादा दिखाई देते
हैं। केरल आने वाले पर्यटक सबसे ज्यादा दो
जगहों पर जाना पसंद करते हैं। केरल का हिल स्टेशन मुन्नार और बैकवाटर के लिए फेसम
एलेप्पी और कुमारकोम।
जबकि केरल के चप्पे चप्पे पर प्राकृतिक सौंदर्य ही नहीं, ऐतिहासिक और पौराणिक
खजाना भी भरा पड़ा है। किसी शहर को रेशा रेशा खोलना (एक्सप्लोर) करना हो तो पोपुलर
जगहों की नहीं, उसके सुदूर इलाको में जाना चाहिए। जहां जाकर आपके ज्ञान में बढोतरी
ही होती है।
भरत मंदिर |
राम के तीसरे भाई भरत के नाम पर कोडलमनिक्यम मंदिर भी “चेरा किंग” सतनु रवि वर्मन के शासन
काल में 854 ए डी में बना था। कोंडुगुलुर प्रखंड के इरींजालाकुड़ा गांव में स्थित
इस मंदिर में भरत की छह फुटा मूर्ति है जिसका चेहरा पूरब की तरफ है।
राजा ने ही अरब के रहने वाले मलिक-बिन-दीनार को खत लिख कर यहां मस्जिद बनाने
का आग्रह किया। 7वीं शताब्दी में अरब से व्यापारियों का एक दल “मलिक बिन दीनार” और “मलिक बिन हबीब” के नेतृत्व में केरल आया
और इस मस्जिद की स्थापना की। उन्होंने राजा चेरा के नाम पर ही मस्जिद का नाम “चेरामन मस्जिद” रख दिया। 11वीं शताब्दी
में इस मस्जिद का पुनरुद्धार हुआ और उसके बाद कई बार इसका परिसर बढाया गया। सांप्रदायिक
सदभाव की प्रतीक मस्जिद आज भी चमकती है। इसके रखरखाव पर खासा जोर रहता है। क्योंकि
यह मस्जिद गैर मुस्लिमों के बीच भी श्रद्धा का केंद्र बनी हुई है। हिंदू परिवार के
लोग अपने बच्चे का “विधारंभ उत्सव” इसी मस्जिद में करते हैं।
भरत मंदिर परिसर |