कहानी
माई री मैं टोना करिहों
गीताश्री
“ कहां से आ रही हो...ये तुम्हारे चेहरे का रंग
क्यों उड़ा हुआ है...फोन क्यों नहीं उठाया तुम लोगो ने..कितनी बार कॉल किया
है..कुछ अंदाजा है तुम दोनों को...?”
दोनों के चेहरे पर
हवाईयां उड़ रही थीं। मिताली ने चीखते हुए एक साथ कई सवाल पूछ कर दोनों को और असहज
कर दिया था। दोनों को शायद मिताली के बमवर्षक स्वभाव का अंदाजा था। बोला कुछ नहीं,
हारे हुए जुआरियों सी घर के अंदर चली आ रही थीं जैसे बीच समंदर में तैरते जहाज के
डेक पर पिटे हुए दो जुआरी मातम मनाते बड़बड़ाते, अनजानी हवाओं और अपने भाग्य को
कोसते नजर आते हैं। उन्हें मिताली के गुस्से की परवाह नहीं थी। दोनों अपने कमरे की
तरफ बढ रही थी जैसे एक एक पांव पत्थर से बंधे हों.।
मिताली फिर गरजी...
“ क्या बात है, बताओगी भी कुछ..? .मैं यहां घर का काम करते करते मर गई और तुम
दोनों मां बेटी गायब...बता कर तो जाती...हद है..कितना भी तुम लोग के लिए किया जाए,
तुम लोग कभी सगे नहीं हो सकते..हमारी परेशानियों से तुम्हारा कोई लेना देना नहीं
होता..बस अपने बारे में सोचते हो। मैं पागल हूं क्या जो चीखती चिल्लाती रहती हूं। तुम
अपने मुंह में दही जमा लेती हो..? ”
“मैंने वो कर दिया, जो नहीं करना चाहिए
था...अनहोनी घटित करा दी...मैडम..अनहोनी..लेकिन हार गई...यह भी बेकार गया..अफसोस..”
अधेड़ सिल्बी पल्टी..अपनी
जवान बेटी एलीना की हथेलियां जोर से पकड़े हुए अपने छोटे से दमघोंटू कमरे में घुस
गई। यही वह अस्थायी पनाहगाह था जहां दोनों मां बेटी पिछले कुछ समय से छुपती चली आ
रही थीं। इस वक्त यह पनाहगाह कितना सुकुनदायक था ये कोई इन दोनों से पूछे। मिताली
का माथा घूम गया.
क्या..ओह..कहीं उसकी सलाह
पर तो अमल नहीं कर लिया ? हे भगवान...बात
तो पता चले..कोई और बात तो नहीं...।
घर में देर तक सन्नाटा
छाया रहा। मेरी धड़कन बढी हुई थी। कोई तो बात हुई है जो नहीं होनी चाहिए थी। मेरी
आंखों के सामने पूरी फिल्म घूमने लगी।
एक साल पहले ही सिल्बी
अपनी जवान होती बेटी की ऊंगली थामे उसके पास आई थी, काम के लिए। उसकी संस्था ने भी
कहीं भेजने से मना कर दिया था। सिल्बी की शर्त्त थी कि जहां भी जाएगी, अपनी बेटी
के साथ जाएगी। उसे अकेली नहीं छोड़ेगी। सिल्बी का स्वभाव इतना मिलनसार था कि हर कोई
घरेलू कामकाज के लिए उसकी मांग करता, उसे ले भी जाता, बेटी के साथ और कुछ ही दिन
बाद दोनों मां बेटी लौट कर संस्था के होस्टल में वापस आ जातीं। संस्था वाले भी
परेशान हो उठे थे। मां बेटी पर दवाब बन रहा था कि या तो वे गांव लौट जाएं या बेटी
को कहीं छोड़ कर घरो में काम पर लग जाए। मिताली की नजर सिल्बी पर जब पड़ी, वो भीतर
ही भीतर टूट चुकी थी। न वह अपने गांव लौटना चाहती थी न ही अकेली किसी घर में काम
करने को तैयार थी। जहां जाएंगी, दोनों साथ। अजीब जिद है।
मिताली ने इन्हें देखा तो
उम्मीद बंधी। अच्छा होगा, दोनों मां बेटी साथ रहेंगी, एक से दो भले। बहुत विचार कर
मिताली ने जब अपने घर चलने का प्रस्ताव दिया तो सब एक दूसरे का चेहरा देखने लगे। मिताली
ने सबके चेहरे पर रहस्यमयी छाया आते जाते देखी। उसने नोटिस किया।
“कोई बात है क्या ?”
“ ये दोनों आपके काम की नही हैं। हम आपके यहां इन्हें
नहीं भेज सकते।“
सिल्बी की आंखों में चिरौरी
कौंधी। उसकी बेटी कोने में बैठी शायद साड़ी में फौल लगा रही थी। मिताली ने सिस्टर
की तरफ सवालिया आंखों से देखा..
“ मैं इन दोनों को अपने पास ले जाऊंगी, फिर क्या
प्रोब्लम..”
फौल लगाते लगाते एलीना की
नज़रें पहली बार मिताली की तरफ उठी. उनमें खौफ भरा था। वे आंखें अनगिन सवालो से लैस
बंदूक की तरह दिख रही थीं, जिसका ट्रिगर कभी भी दब सकता है। मिताली सिहर गई। कभी
देखी नहीं ऐसी आंखें..। घर पर रात दिन ये आंखें यूं ही दिखेंगी तो जीवन कठिन हो
जाएगा। मिताली ने अपनी नजरें उधर से हटा लीं। सिल्वी ने जाकर जोर से एलीना का हाथ
पकड़ कर उसे खड़ा कर दिया।
ये लोग तुम्हारे काम के
नहीं हैं, मैं अब तक इन्हें तुम्हारे पास भेज चुकी होती। इन्हें नहीं भेजने के
पीछे कोई वज़ह होगी। अब जब तुमने तय कर लिया है, इन्हें ले ही जाने का तो इनका सच
बता देना चाहती हूँ।
सिस्टर गंभीर दिख रही
थीं, चिंतित भी लगीं।
मिताली सिस्टर के करीब आई...
“आप जो भी कहें कृपया धीरे कहें, मैं नहीं चाहती
की यहां बैठे सभी लोग सुनें।“
मिताली को लगा था की ज़रूर
कोई ऐसी-वैसी बात होगी जिसकी पर्देदारी ये लोग लंबे समय से करते आ रहे थे। वैसे वह
सुन भी लेना चाहती थी की जिन्हें वह घर ले जाना चाहती थी, उनकी सचाई पता तो होनी
ही चहिये।
सिस्टर वैसे तो स्वभाव से
कोमल थी लेकिन उनकी आवाज़ कड़क थी। इसलिए मिताली के मना करने पर भी उनकी आवाज़ सिल्वी
और एलीना दोनों तक पहुँच गई-
“ ये लड़की मिर्गियाह है .. इसे दौरे पड़ते हैं ..
कभी भी ..कहीं भी ..किसी भी जगह ...इसलिए हम इन्हें न तो कहीं भेजते हैं न ही कोई
इन दोनों माँ-बेटी को अपने यहाँ रखता है।“
“ अगर संभव हो तो बेटी को आप संस्था के होस्टल में
रख लीजिये, मैं माँ को ले जाती हूँ...सिल्बी मिलने आती रहेगी।”
सिस्टर और मिताली दोनों
ने सिल्बी की तरफ देखा, सिल्बी एलीना की तरफ झुकी हुई थी और एलीना ...जोर से उसके
मुँह से चीत्कार निकल गई...एक ऐसी करुण चीत्कार जैसे किसी मेमने का गला दबा दिया
गया हो. आँखें ऐसे पलट गयीं जैसे हलाल किये जाने वाले बकरे की कातर आँखें..हाथ पैर
अकड़ने लगे उसके..न जाने किस दिशा में देख रही थी आंखे, मुंह से सफेद पानी की पतली
धारा निकल रही थी। उसका पूरा चेहरा पहली बार देखा मिताली ने। चेहरा आधा जला हुआ,
उसकी खाल सिकुड़ी हुई थी। एक तरफ चिकना, गोरा चेहरा दूसरी तरफ झुलसा हुआ। एलीना के
कंठ से तरह तरह की करुण आवाजें फूट रही थीं। दोनों हाथों की ऊंगलियां ऐंठ गईं थी। ऐसा
लगा कि वे उंगलियां कहीं इशारा करते करते ऐंठ गई थीं। वह कुछ दिखाना चाह रही थी। कुछ
अदृश्य था, हवा में, जो सिर्फ एलीना को दिख रहा था। सिल्बी उसे सहजने में लगी थी।
बाकी सारे लोग स्तब्ध थे।
अचानक सिस्टर मिताली की
तरफ मुखातिब हुईं-
“ देखा, देख लो, इसलिए नहीं भेजती कहीं इन्हें..”
मिताली डरी हुई थी। सिल्बी
उसे खींच कर दूर ले गई। थोड़ी देर तक अदम्य शान्ति छाई रही वहां, सिस्टर, मिताली सब
एकदम चुप्प...गहरा सन्नाटा छाया था। मिताली समझ नहीं पा रही थी की वह क्या करे..उसका
चेहरा एक कशमकश में डूब-उतरा रहा था।
एलीना को लेकर एक छुपे
कोने में सिल्बी ले गई थी।
अचानक सन्नाटे को चीरती सिल्बी
की आवाज़ गूंजी-, “ मैडम आप हमें ले
चलिए, मैं वादा करती हूँ आपको कोई परेशानी नहीं होगी...इसे दौरे सिर्फ 5 मिनट के लिए
आते हैं..वो मैं संभाल लूंगी।“
कभी कभी आवाज भी हथियार
होती है। मन का मैल तो काटती ही हैं, दुविधाएं भी काट देती है। मिताली ने एक नज़र सिस्टर को देखा। “अब भी अगर ले जाना चाहें तो हमें कोई दिक्कत
नहीं। बट, प्लीज, डोंट ब्लेम अस, यूओर डिसीजन्स...हमें कहीं न कहीं सिल्बी को काम
दिलाना ही है। इसकी जिंदगी का सवाल है। हम तलाश कर रहे हैं..पर आपको अपना फैसला
खुद ही करना है। “
मिताली सोच में थी। लेकिन
फैसले पर पहुंच गई थी। सारी शंकाओं पर उसकी जरुरत हावी हो गई थी। सच यह था की
मिताली भी बिना मेड के गंभीर समस्याओं का सामना कर रही थी. बिना मेड, घर और ऑफिस
दोनों को संभालना बहुत दुष्कर होता जा रहा था।
अब वे दोनों यानि सिल्बी
और एलीना मिताली के घर पर थीं और मिताली न जाने किन झंझावातों से गुज़र रही थी. कभी
ख्याल आता कि कहीं उसने इन दोनों को लाकर गलती तो नहीं की, कभी यह कि न जाने कैसी
हैं ये दोनों, क्योंकि वे दोनों उसे थोड़ी सी रहस्यमयी भी लगी थीं, घर आने के बाद
जब उसने सिल्बी से उसके पति के बारे में जानना चाहा तो सिल्बी ने एक निश्चित उत्तर
नहीं दिया।. कभी वह कहती ...मेरा पति नहीं है ...कभी कहती ..वह हमें छोड़कर भाग गया
और इस सवाल पर नज़रें चुराती या झेंप जाती। वह बचती थी इस सवाल से। कई बार जवाब
देते देते कमरे से घुस जाती..। उसे पति से संबंधित सवाल बहुत नागवार लगते थे।
सिल्बी का मन होता कि
मिताली से पूछे कि आपके पति कहां हैं। आप अकेली क्यों रहती हैं। आपकी बच्ची कभी अपने
पापा का नाम क्यों नहीं लेती। मालकिन थी वो। कहीं बुरा ना मान जाए। पर मिताली की
जीवन भी उसे कम रहस्यमय नहीं लगता। कुछ मामला यहां भी है जिसने मैम का जीवन भी
दर्द से भर दिया है। दफ्तर से लौट कर खामोश मिताली आकाश निहारा करती है। दो दर्द
एक छत के नीचे वक्त काट रहे थे।
इधर मिताली के जेहन में
उठते सवालों और सिल्बी के अनसुलझे जवाबों ने उसकी नज़र में सिल्बी को रहस्यमयी बना
दिया था और एलीना इसलिए रहस्यमयी थी क्योंकि वह कुछ बोलती नहीं थी, बस अजीब सी
नज़रों से कभी किसी चीज़ को, कभी किसी चीज़ को घूरती रहती। काम-धाम करना तो दूर की
बात। सिल्बी जरुर दिनभर काम में जुटी रहती। बीच बीच में एलीना को देखती। उसकी रंगहीन
आँखों से मिताली को बहुत डर भी लगता था। वे रंग बदलने वाली आंखें थीं। समय समय पर
रंग बदलती हुईं। हमेशा पीछा करती हुई आंखें।
उसके मन में बुरे-बुरे
ख्याल भी आते थे क्योंकि उसने सुन रखा था कि मिर्गी के पेशेंट दौरा पड़ने के क्रम
में अजीब-सी हरकतें भी करते हैं, जैसे हाथ-पैर पटकना, गला दबाना...। एक पल को सिहर
उठी वह कि कहीं वह घर पर न हो और इसे दौरा पड़े और इसने मेरी बच्ची का गला दबाने की
कोशिश की तो...हाय मेरी फूल-सी बच्ची.। अब उसे लग रहा था कि उसने इन दोनों को लाकर
गलती ही की। पर अब कर भी क्या सकती थी. रोने का, बहुत जोर-जोर से रोने का मन कर रहा
था पर रोए किसके सामने। कोई ऐसा नहीं था जिसके सामने घरेलू-राग गा सके। इन्हीं
झंझावातों से जूझते उसने हारकर सिस्टर को फ़ोन मिलाया-
‘हैलो सिस्टर, मैं मिताली
....आगे वह कुछ बोल नहीं पाई, आवाज भारी हो गई थी। ’
‘एनी प्रॉब्लम मिताली
...मैंने तुम्हें पहले ही कहा था ...सिस्टर बोल पडीं। ’
‘नो सिस्टर ...नथिंग...बस
मैं सिल्बी के पति के बारे में जानना चाहती थी...मिताली ने खुद को संयत करते हुए
कहा।
‘ओह..। देखो मिताली इसके
पति के बारे में ठीक ठीक तो मुझे भी पता नहीं, पर हाँ उड़ती हुई एक बात पता चली थी
कि वह कोई बड़ा मालिक है जिसके यहाँ सिल्बी काम करती थी और एलीना उसी की बेटी है।
अब कौन है, कहां रहता है...ये सब हमें नहीं पता। हमने पूछा भी नहीं। संस्था में
गांव का पता दर्ज है, जहां उसके घरवाले रहते हैं।’
‘ओके .. थैंक्स....कहकर
मिताली ने फ़ोन रख दिया.
एकाध सप्ताह बीत गए. सिल्बी
और एलीना दोनों का मन भी यहाँ लग गया था और मिताली कि समस्या भी सॉल्व हो गई थी.
एलीना को यहाँ दौरे भी नहीं पड़े थे अबतक, लेकिन एक दिन किसी बात पर मिताली ने
एलीना को जोर से डांट दिया। उस दिन उसे फिर से दौरा पड़ा। इस बात का मिताली को तो
कुछ दिनों बाद पता चला क्योंकि उस दिन वह हड़बड़ी में थी और दफ्तर के लिए निकल गई
थी।
एक बार फिर किसी बात पर
मिताली ने जोर से एलीना को आवाज़ दी तो घबराती हुई सिल्बी आई-, “‘मैडम इसे मत डांटिए प्लीज़...उस दिन जब आपने
डांटा था तो उसे दौरा पड़ गया था, यहाँ जब से आई है तब से इसे उसी दिन पहली बार ही
दौरा पड़ा था। जब से यहां आई है, दौरे कम पड़ने लगे हैं। किसी बात का तनाव होता है या
किसी बात से डर जाती है तो जल्दी जल्दी पड़ते हैं। “
मिताली ने सिल्बी से पूछा
– ‘इसे दौरे कब से पड़ते हैं ..बचपन से, मेरा मतलब है जन्म से ही’...?
‘नहीं मैडम ...यह थोड़ी
छोटी थी और मेरे मामा मामी के पास थी गाँव में। मैं शहर में थी काम पर। पैसे भेजती
रहती थी। सोचा था वहां पल जाएगी, यहां का कहां मैं घर घर लेकर फिरती। बच्चों वाली
मेड को कोई काम पर नहीं रखता। मुझे क्या पता था कि मेरे अपने ही मेरी बच्ची के
साथ....सिल्बी कराही।
“मेरा मामा बहुत बुरा आदमी था मैम। पता नहीं
उसने क्या किया इसके साथ। मुझे कुछ पता नहीं चला। एक दिन खबर मिली कि यह बुरी तरह
जल गई है। तब ये 10 साल की थी। उसके बाद ही इसे दौरे पड़ने लगे, शायद दिमाग कि कोई
नस जल गई है, बहुत डाक्टरों को दिखाया। अब एम्स में भी दिखा रही हूँ। पर कोई फायदा
नहीं. तबसे मैं इसे किसी के भी पास नहीं छोडती। अकेला कभी नहीं छोडती...’ भर्राई
आवाज़ में सिल्बी बताती जा रही थी.
ओह....मिताली की आंखों
में अखबारों की कतरने, खबरें घूमने लगी। ऐसी कितनी खबरें भरी होतीं है। तो ये बात
है...एलीना भी...तभी किसी पुरुष की छाया से डर जाती है। शायद सिल्बी ने इसीलिए काम
के लिए मर्दविहीन घर की तलाश करती है। मिताली को याद आया कि उसने संस्था में फार्म
भरते समय घर के सदस्यो की डिटेल्स दी थी। उसमें दो सदस्य-मिताली और रेशमा दर्ज थे।
इसका मतलब सिस्टर अंदर से चाहती थी कि सिल्बी मेरे घर आए..। सिल्बी का चेहरे पर
उदासी, हताशा और नैराश्य की मिली जुली परछाई तैर रही थी। पहली बार गौर किया। जंगल
मे तपे हुए चेहरे वक्त की मार खाकर कैसे बुझे हुए कंदील में बदल जाते हैं। कितनी
घिसाई हुई होगी शहर में, बड़े मकानो में, कितने मालिक, कितने मालकिन..कितने कितने
सितम..। कितनी आवाजें, कितना शोर इतने सालो में पचा कर सिल्बी का चितकबरा जिस्म
तैयार हुआ होगा। सिल्बी सपनों की जमीन से उखड़ी हुई ठूंठ की तरह खड़ी थी, वहां। मिताली
ने ठंडी सांस छोड़ी। दोनों मां बेटी के प्रति सहानूभूति और दिलचस्पी जगी। उसने
धीरे-धीरे ऑबज़र्व करना शुरू किया।
एलीना तेज़ आवाज़ से डर
जाती है और किसी पुरुष की उपस्थिति भी उसे डराती है। घर में कोई पुरुष गेस्ट आ जाए
तो एलीना कभी पानी देने भी नहीं जाती, न ही सिल्बी उसको भेजती थी। दरवाजे की घंटी
बजे तो सबसे धीमी चाल में चलती हुई एलीना जाती और ड्राईवर, धोबी या पेपरवाले को
देखते ही तेज कदमों से लौट आती, बिना दरवाजा खोले। मिताली के यहाँ आये किसी पुरुष मेहमान
को वह पानी तक देने जाने से घबराती थी। मिताली के दिमाग में एलीना को लेकर अब हर
पल उधेड़बुन चलती रहती थी। वह एलीना के बीमारी के कारणों का अनुमान लगाती थी और हर
बार उसकी आशंका एक ही जगह जाकर ठहर जाती- ‘क्या पता सिल्बी जब उसे अपने
रिश्तेदारों के पास छोड़कर आई थी तब वहां बचपन में उसके साथ कोई हादसा हुआ हो..
शायद इसीलिए वह पुरुषों से डरती थी। वह जली कैसे, उसकी आंखों में इतना खौफ क्यों
है, वह पुरुषों की छाया से भी डर क्यों जाती है। सिल्बी को शायद ज्यादा नहीं पता।
उसकी बेटी का बचपन अंधेरे में रहा है। वह उसकी बीमारी के लक्षणों को ठीक से पकड़
नहीं पाई है आजतक। तभी तो वह बार बार एलीना की शादी को लेकर चिंतित दिखती है। एलीना
मिताली की 3 वर्षीय बेटी रेशमा से जरुर हंसती खेलती दिख जाती है। एलीना को हंसते
हुए तभी देखा था मिताली ने जब रेशमा उसके बाल खींच कर तालियां बजाती....हुर्रे...।
मिताली चाहती भी नहीं कि वह उसकी बेटी से ज्यादा घुले मिले। क्या पता, कब अटैक आए
और बच्ची डर जाएं। सिल्बी को साफ साफ बता दिया था कि एलीना को दूर रखे। सिल्बी
भरसक कोशिश करती कि एलीना अपने कमरे में बैठी रहे। कभी कभार अपनी हेल्प के लिए
आवाज लगा देती।
बारिश के दिन थे। ऊमस थी
समूची फिजा में। शाम को दफ्तर से लौट कर मिताली अपने बालकनी में बैठी बाहर भीतर
दोनों तरह से गीली हो रही थी। दूर ऊंची इमारतें बारिश की धुंध में खोई हुई दिखीं। जैसे
उसकी जिंदगी धुंध से भर गई है, इमारतों की तरह। कुछ भी स्पष्ट नहीं हो पा रहा है।
यहां रहे या वापस लौट जाए, उसी भवन में, जहां सालों रहती आई है। इतनी मुश्किल से
बच्चों समेत निकल पाई वहां से। कुछ छूट गया था, वहां, पटपड़गंज के उसी फ्लैट में। चलते
समय कैसे दहाड़ा था अखिलेश- “जाओ, जाओ.. तुम्हें मुक्ति चाहिए, आजाद, पुरुषविहीन दुनिया तुम्हें लुभा रही है। तुम
जैसी औरतों को ना पति चाहिए ना साथी। अकेली दुनिया बसाओ। कोई मर्द नहीं बना
तुम्हारे लिए। तुम्हारे कहने पर हम साथ रहे, शादी नहीं की। तुम जिंदगी को
प्रयोगशाला बना रही थी और मैं मूर्ख तुम्हारा साथ दे रहा था। तुम जानती थी कि शादी
होती तो रिश्तों को झटकना इतना आसान नहीं होता तुम्हारे लिए...हमारे रास्ते अलग
हुए...मुझे अपना पता भी मत देना..। अब मैं फिर से प्रेम करुंगा, शादी भी
करुंगा...तुम देखना, घर कैसा होता है और समझौते कैसे होते हैं..।“
मिताली ने अखिलेश के
प्रलाप को रोका...”लिव इन में रहने का फैसला एतकरफा नहीं था, मुझ पर इल्जाम न लगाओ। तुम भी शुरुआती दौर में
शादी को लेकर कन्फयूज थे। हम दोनों चाहते थे कि कुछ वक्त साथ रह कर देखें, समझे और
फिर...”
“और कितना वक्त चाहिए तुम्हे मिताली, बच्चा
क्यों पैदा किया..., तुमने तो इतना ही समझा कि मुझे अपना दुश्मन मान लिया...साथ
रहते हैं तो कुछ समझौते करने पड़ते हैं और तुम बिल्कुल तैयार नहीं हो..। “
अखिलेश बौखला रहा था।
मिताली जैसे काठ की हो गई
थी। उसका अपना फैसला था जो अलग राह लिए जा रहा था।
ये फैसला तो उसे बहुत
पहले कर लेना चाहिए था। देर हुई। अखिलेश ने मान लिया था कि जिदंगी अब उसकी मुठ्ठी
में है। मिताली की इच्छाएं, उसके सपने, उसका मोबाइल, उसकी कविताएं, उसका फेसबुक
एकाउंट...हर जगह अखिलेश की छाय़ा। वही पतियों वाली टोकाटोकी, पतियों वाली धौंस, वही
मोबाइल पर एसएमएस चेक करना और रिएक्ट करना और गुस्से में चीखना...ये सब यहां नहीं
चलेगा...तुम मेरे घर में रहती हो, न भूलो..और एक दिन तो हद हो गई जब आधी रात को
मोबाइल पर किसी दोस्त का भेजा एक शेर-“ ख्वाहिशो का
काफिला भी अजीब है, कमबख्त गुजरता वहीं से है जहां रास्ते नहीं होते...” पढ कर अखिलेश चीखा--.”भठियारपन नहीं चलेगा यहां..समझी...।“ मिताली ने समझाना चाहा कि उसने दिन में ये शेर
मांगा था, कहीं इस्तेमाल करने के लिए, जो दोस्त ने अब भेजा है...पर अतिशय प्रेम
अंधा होने के साथ साथ बहरा भी हो जाता है, सुनता नहीं। ऐसा प्रेम नियंत्रित करना
चाहता है और चीजों को अपने चश्मे से देखता है। अखिलेश भी बहरा हो चुका था। मिताली
की बाहरी दुनिया में जैसे जैसे पुरुष मित्रों की संख्या बढ रही थी, अखिलेश उतना ही
कुंठित होता चला जा रहा था। और उस रात...भठियारिन शब्द सुनकर घृणा की एक लहर उपर
से नीचे तक दौड़ गई पूरी देह में। ये आखिरी कील थी रिश्ते की जो गहरे धंस गई थी। साथ
रहने की नई और प्रायोगिक अवधारणा भी जब शादी की गति को प्राप्त हो गई तब क्या..?
जिंदगी की जैसे सवालों के
धुंध में घिर गई थी। उसने दूर क्षितिज में छिटकते बादलो को देखा। हल्की फुहारें
बरसने लगीं। उसे लगा शायद धुंध साफ होगी जल्दी। उसने हाथ बढाया, बारिश की बूंदे
हथेलियों पर झरने लगीं। किसी नेमत की तरह। सिल्बी उसके पास न जाने कब आकर खड़ी हो
गई थी। उसे पता नहीं चला। अपनी जिंदगी से जूझती हुई मिताली ने सिल्बी को अपने बारे
में कोई भनक नहीं लगने दी थी।
“बहुत उमस है, चिपचिपी गरमी वाली, धरती की गरमी
अभी निकली नहीं, इसलिए, ”
सिल्बी एकदम पास आकर खड़ी
हो गई थी। “कुछ लेंगी, चाय
बनाऊं..”
“ आं..हां...नहीं...रहने दो...लिम्का है तो दे
दो...गैस-सी बन रही है..इसे पी लूं तो शायद ठीक हो जाएं..”
मिताली ने सिल्बी को जाते
हुए रोका, इधर आओ...
“एक बात बताओ..एलीना की हालत कभी ठीक नहीं होगी
क्या...क्या जीवन भर ऐसी ही रहेगी..कुछ सोचा है..”
डॉक्टर कहते हैं कि इसकी
शादी कर दो यह ठीक हो जाएगी। अब कौन करेगा इससे शादी..कहां से लड़का लाऊं...गांव
बिरादरी में सबने मना कर दिया है, तभी तो साथ लिए फिर रही हूं मैडम, जब तक हूं तब
तक निर्वाह, आंख बंद, सारी चिंता खत्म..क्या कर सकती हूं..बताइए...
मिताली ने हैरानी से
पूछा..लड़के नहीं मिल रहे, अच्छा..?? तुम बताओ ही मत,
चुपचाप शादी कर दो, ठीक हो जाएगी, फिर क्या ।’
‘मैडम मैंने बहुत कोशिश
की पर इसकी जली हुई शक्ल की वज़ह से कोई इससे शादी करना नहीं चाहता। मैंने तो इसके
लिए बहुत से पैसे भी जमा कर रखे हैं, जो इससे शादी करेगा उसे पैसे भी दूँगी.’
“अब तो इसके लिए भी तैयार हूँ कि कोई पैसे लेकर
भी इसके साथ “कुछ” कर ले...शायद ठीक हो जाए। कोई नहीं मिलता
मैडम, अब तो जादू टोना ही करना पड़ेगा..” सिल्बी आजिज आ
चुकी थी।
“हरियाणा में बहुतेरे कुंवारे लड़के मिलते
हैं..वही ढूंढे कोई...”
सिल्बी मिताली की सलाह
सुने बगैर लिम्का लाने चली गई। बारिश थम गई थी। सांझ की स्याही आकाश पर उतरने लगी
थी।
अचानक किकियाती हुई आवाज
आई। मिताली उठकर दौड़ी। बच्चों वाला घर है। डर तो लगा ही रहता है। वैसे भी एक डर
इस घर में रहता है। कुछ तो है जो अब तक सिल्बी छिपाती आ रही है। आवाज सिल्बी के
कमरे से आ रही थी। परदा हटाया, एलीना अपने बिस्तर चित्त पड़ी दोनों पैर, हाथ रगड़ रही थी। सपने में थी
या अर्द्दचेतना, सारी चादर सिमट गई थी। आंखें मुंदी हुई। कंठ से आवाजें, किकियाने
की। वह हिल रही थी और हाथ पैर उठाने की कोशिश कर रही थी।
सिल्बी पास में खड़ी अजीब
सी मुद्रा में दिखी।
“ क्या हो रहा है...जगाओ इसे..बुरा सपना देख रही
होगी..”मिताली अक्सर
बुरे सपने देखते हुए चिंहुक कर जगती रही है। कई बारे उसकी आंखों से नींद में ही
टपके आंसू से गाल गीले रहे हैं। उसकी कंठ से भी आवाजें निकलती रही हैं। बड़बड़ाई
भी है...पर सुनने वाला कौन..अपनी ही आवाज कानों में पड़ी और नींद खुल गई झटके से।
‘नहीं मैडम..मत जगाइए..जब भी ये चित्त सोती है,
ऐसे करती है। मना करती हूं, चित्त न सोया कर...कभी सोने नहीं देती। आज पता नहीं
कैसे...”
“क्यों, चित्त सोने में क्या प्रोब्लम है ?”
हमारे गांव में कहते हैं,
जिन्न फिदा हो जाता है कुंवारी लड़कियों पर और ऊपर से दबोच लेता है..मैं तो रात
में इत्तर भी नहीं लगाने देती इसको...सरसराती हुई आवाज में सिल्बी जैसे कोई रहस्य
खोल रही थी।
अच्छा...!!!
मिताली हो हो हो कर हंसी। कुछ पल के लिए एलीना की छटपटाहट का अहसास जाता रहा।
ये ट्राइबल भी ना...क्या क्या वहम पाले रखते हैं...बात कुछ और..और कारण कुछ
और..ओ गौड..तभी एलीना की प्रोब्लम कुछ और इलाज कुछ और...।
“तभी तो मैडम जी...हम सोचते हैं इसकी शादी करा
दें...शायद ये सब बंद हो जाए..”
एलीना बेचैनी से बिस्तर
पर अपनी पीठ रगड़ते रगड़ते शांत हो रही थी। मिताली को समझ में आया, ये किसी बुरे
सपने का असर था। वह भी तो रातो में अखिलेश को तलाशते हुए बिस्तर पर ऐसे ही देह
रगड़ लिया करती है। ठंडा बिस्तर भायं भायं करता है, वह नींद से जग कर बच्चो को
अपने से चिपका लेती है। ये सपनो का जिन्न है, जो सोते जागते, डराता रहता है। इसका
इलाज कुछ और है। मिताली को लगा सिल्बी कहीं न कहीं अपनी बेटी की बीमारी को गलत तरह
से देख समझ रही है। वह मानसिक संताप को दैहिक ताप से जोड़ रही है। वह दोनों में
फर्क नहीं कर पा रही है। कैसे समझाएं..मर्द के सिर्फ दैहिक स्पर्श से कौन-सी
स्त्री का संताप दूर हुआ है। मर्दो के साथ कभी रही नहीं सिल्बी...कैसे समझेगी। खुद
भी झेल रही है। अब बेटी की बीमारी का इलाज किस दिशा में ढूंढ रही है। ओह..
और फिर एक दिन, दोनों मां
बेटी डाक्टर से पास गईं। वक्त पर लौटी नहीं। इंतजार की बेचैनी में मिताली परेशान
हो रही थी।
मिताली के सामने सिल्बी
के यह वाक्य गूंज रहे थे- “अब तो इसके लिए
भी तैयार हूँ कि कोई पैसे लेकर भी इसके साथ कुछ कर ले लेकिन कोई नहीं मिलता
मैडम...जादू टोना करना पड़ेगा...”
फिर मिताली के सामने सिल्बी
का आज का वाक्य – “मैंने वो कर
दिया, जो नहीं करना चाहिए था...अनहोनी घटित करा दी...मैडम..अनहोनी..लेकिन हार
गई...यह भी बेकार गया..अफसोस..।”
मिताली को समझते देर नहीं
लगी कि सिल्बी एलीना के साथ कहाँ से लौट रही है...मिताली ने सिल्बी के दोनों
कन्धों को थामते हुए जैसे ही कुछ और कहना-पूछना चाहा। सिल्बी बिलख पड़ी ...“ मैडम इसके साथ कोई सोने को तैयार नहीं होता, शादी
तो दूर की बात है। आज ऐसी ही एक कोशिश करके आ रही हूँ, जैसे ही वह लड़का इसके सामने
आया, इसे दौरे पड़ने लगे और वह चीखता हुआ भाग खड़ा हुआ। न जाने यह कैसी किस्मत लेकर
पैदा हुई है। मैं नहीं चाहती कि इसे अपने जैसी ज़िन्दगी दूं...बिनब्याही माँ बन
जाये यह...फिर यह खुद का ख्याल नहीं रख सकती, बच्चे का ख्याल कैसे रखेगी...मैंने
तो इसका ख्याल रख लिया मैडम पर मेरे बाद इसका कौन है...इसलिए चाहती हूँ कि इसकी
शादी हो जाए किसी तरह पर इसके नसीब में तो सुख बदा ही नहीं है न । ”
सुबकते हुए सिल्बी कहती
जा रही थी और मिताली जो अब तक गरज रही थी अब उससे कुछ कहा नहीं जा रहा था। कैसी
मां है ये औरत ? अपनी संतान के
भविष्य के लिए हर मां सजग रहती है। बहुत कुछ करती है, किंतु इसने तो दुनिया के
सारे पहाड़ अपनी छाती पर रख लिए। जीवन सुधारने की शुरुआत ही जब उसके उजड़ने से हो
तो ? हारे को हरिनाम
ही तो बचता है। इसके लिए हरिनाम यही था शायद, अंतिम उपाय, मगर कितना त्रासद।
मुझे कुछ तो करना पड़ेगा, सिल्बी ऐसे नहीं मानेगी। इस उम्र में समझाना मुश्किल
है। मिताली को समझ में आ रहा था कुछ-कुछ...ये अंधेरा यूं ही नहीं किसी लड़की के
जिस्म में भरता हैं। असुरक्षित बचपन के अंधेरे से जूझती हुई इस बच्ची का ठौर कहीं
और है। एक नयी जमीन उग रही थी, उस घर में। मिताली को एलीना से बहुत बात करनी है अब।
बहुत कुछ पूछना है, उसके भीतरी संसार को खंगालना है। भीतरी अंधेरे को उजाले से
भरने वाले चिकित्सक की तलाश करनी होगी।
मिताली की नम आवाज आई-,‘सिल्बी
तुम चिंता मत करो, मैं जब तक जिंदा हूँ, एलीना का ख्याल रखूंगी, तुम निश्चिंत हो
जाओ, कहीं ले जाने की जरुरत नहीं, मैं देखूंगी इसकी बीमारी को, मुझ पर छोड़ो, जैसा
कहूं, मान जाओ। अपने वहम छोड़ दो। पर...”
मिताली अटकी- “तुम भी मुझसे एक वादा करो, अगर मैं तुमसे पहले
चली गयी तो तुम मेरी बेटी का ख्याल
रखोगी। बेटी की चिंता है, लड़की जात है, मेरे बाद उसका जीवन तबाह हो जाएगा।’
मिताली के सीने से धुंए
का कोई गोला उठा, हलक में फंस गया।
अचानक सिल्बी के आंसू सूख
गए..विस्फारित नेत्रों से उसने मिताली को देखा, आँखों में कई सवाल लिए और उनके
जवाब भी उसे खुद-ब-खुद मिल गए। न उसने मिताली से कुछ पूछा न मिताली ने बताया..हाँ,
दोनों के बीच कायम हुए आंसुओं के रिश्ते ने वो सबकुछ कह दिया था जो अनकहा था अबतक।
अब दोनों के आंसू साथ-साथ बह रहे थे और एक कोने में खड़ी एलीना और उसके बालों से
खेलती रेशमा अपनी-अपनी मांओं को चुपचाप देख रही थीं...। .